Saturday, November 30, 2024

यूपी वाले ड्राइवर भैया

    तीर्थ यात्रा से लौटते समय एक दिन का समय बचा था। फ्लाइट मुंबई से थी तो हमलोगों ने सोचा कि एक दिन मुंबई ही घूमा जाए। योजना बनी कि सबेरे तैयार हो कर पहले महालक्ष्मी मंदिर में दर्शन किया जाये। सबेरे तैयार होकर होटल से निकल हम लोग सड़क पर आये। सामने ही एक काली-पीली टैक्सी खड़ी थी, बुजुर्ग ड्राइवर से बात कर सभी उसमें बैठे। आपस में हमारी बातें सुनकर ड्राइवर समझ गया कि ये लोग बिहार तरफ के हैं, पूछ ही लिया हमसे। मैंने बताया पटना से हूँ। फिर तो उनकी बातें चालू हो गयीं।

    "आप लोग लार्ड्स होटल में रुके हैं क्या ?"

    "हाँ"

    "Mल्ले का होटल है वो। पहले एक क्रिस्चियन का हुआ करता था। फिर इसने खरीद ली। एक-एक दुकान को जानता हूँ मैं इस इलाके में। तीस सालों से गाड़ी चला रहा हूँ यहाँ। फलाने सेठ जी के यहाँ रहता हूँ। बहुत मानते थे मुझे वो। अब नहीं रहे वो पर बोल के गए थे कि जब तक ये है, निकालोगे नहीं ललित पंडित को।"

जब उसने होटल के नाम का उच्चारण लॉर्ड्स की जगह लार्ड्स किया था, तो मैंने अनुमान लगा लिया था कि ये यूपी से है। मैंने भी पूछ ही लिया,"आप यूपी से हैं ?"

"हाँ, प्रयाग का रहने वाला हूँ।"

वास्तव में यूपी की भाषा का जो बोलने का तरीका है (एक्सेंट), उसमें लोग 'ऑ' के जगह 'आ' का उच्चारण करते हैं। जैसे 'हॉस्टल' को 'हास्टल', 'हॉल' को 'हाल' बोलना।      

    उसके बातों का सिलसिला चलता रहा - "देखो, प्राइवेट टैक्सी जो भी मिलेगी OLA से ज्यादा ही पड़ेगा। वैसे आपलोग उधर के ही हो, माने पटना के हो तो दस-बीस कम दे देना। मैं ज्यादा नहीं लेता पर क्या करूँ, हर चीज महँगी है। पेट्रोल महँगी है, मशीन का तेल महंगा है। .... "

   इसी बीच उनका फोन आ गया। फोन पर बोलते सुना,"हाँ मनीजर साहेब, बोलिये"

        उधर से,"कहाँ हो अभी आप ? अभी आ सकते हो?"

    ड्राइवर,"हाँ, अभी महालक्ष्मी मंदिर जा रहा हूँ। कितनी देर में आना है?"

        "पंद्रह मिनट में आ सकते हो तो बोलो, नहीं तो दूसरा देखना होगा।"

    "आ जाऊंगा मैं। बस पंद्रह से बीस मिनट में पहुँचुँगा।"

और उसके बाद वे रेस हो गए और मुख्य सड़क पर लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास उतार कर बोले, "यहाँ से पैदल दो-तीन मिनट का रास्ता है महालक्ष्मी मंदिर का, चले जाओ, अंदर भीड़-भाड़ रहेती है, गाड़ी जाने में दिक्कत होगी।" उनको पैसे देकर हम लोग रास्ता पूछते बढ़े। देखा कि कार तो आ-जा रही थी उस रास्ते में। समझ गए हम कि मैनेजर साहेब के पास जाने की हड़बड़ी थी उन्हें इसीलिए कैब इधर न लाये।                

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Sunday, November 10, 2024

देउड़ी मंदिर और चाकोड़ साग - (हिंदी ब्लॉग)

देउरी मंदिर, तमाड़, राँची 

देउड़ी मंदिर झारखण्ड के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से एक है। राँची से जमशेदपुर की ओर जाने वाले नेशनल हाइवे के किनारे बुंडू के तमाड़ गॉंव में बसा इस प्राचीन मंदिर का गर्भ-गृह अभी भी अपने मूल पत्थर वाले स्ट्रक्चर में है जिसके चारों ओर नया स्ट्रक्चर भक्तों की पंक्तियों के लिए और सुंदरता के लिए बनाया गया है। गर्भ -गृह में लगभग तीन फीट ऊँची सोलह-भुजी दुर्गा माँ की पाषाण प्रतिमा है। प्रतिमा के दोनों तरफ एक-एक पुजारी बैठते हैं जो एक-एक परिवार को एक साथ पूजा कराते हैं, क्योंकि एक साथ अंदर में इतनी ही जगह है। यह मंदिर तब से और अधिक प्रसिद्ध हो गया जब से पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी यहाँ आने लगे।

   इस मंदिर में आप चाहे राँची से जाएँ या जमशेदपुर से - जंगल, पहाड़ और नदियों से गुजरने वाले रास्ते में आपको झारखण्ड की सुंदरता के दर्शन होंगे। यदि मानसून का समय हो तो कहने ही क्या ! बारह बजे से साढ़े बारह बजे तक मंदिर में भोग -आरती के कारण दर्शन पूजन नहीं होता और इसके एक घंटे बाद तक भीड़ ज्यादा होती है। मंदिर परिसर में पूजा के सामान और खिलौनों की दुकानें हैं। पर मैं जब भी यहाँ जाता हूँ तो पूजा के बाद जो मुझे ज्यादा आकर्षित करता है वह है यहाँ पेड़ के नीचे जमीन पर स्थानीय महिलाओं द्वारा लगाया जाने वाला दलहन की दुकान। देसी सामान जानकर इनकी खुदरा खरीदारी करता हूँ। इनमें मूँग, मसूर, उड़द, अरहर, कुल्थी इत्यादि के दाल होते हैं। कुल्थी और अरहर के उलाये (रोस्टेड) दाल भी होते हैं। कुल्थी का दाल किडनी की पथरी को दूर करता है। रोस्टेड अरहर का दाल हल्की खटाई के साथ एक अलग ही स्वाद देता है। खड़ा मूंग और उरद का दाल भी मिल जायेगा यहाँ।जब से लोगों में मुनगा के पत्तों के फायदे की जागरूकता बढ़ी है तो मार्किट में इसके सूखे पत्ते भी बिकने लगे हैं। एक दलहन जिसे लोबिया या घँघरा भी कहते हैं वह भी यहाँ मिलता है। इसे आप मूंग की तरह रात भर भिगोने के बाद सुबह कच्चा खा सकते हैं या इन भीगे बीजों का छोला बनाकर सब्ज़ी की तरह। स्वादिष्ट होते हैं ये। 
   (इस ब्लॉग को आप नीचे एम्बेडेड यूट्यूब में भी सुन सकते हैं) 

सबसे पीछे, लाल तीर के पास
बोरी में चाकोड़ साग पाउडर

इन सब को तो मैं पहचानता हूँ पर किनारे रखे हुए एक हरे पाउडर को नहीं पहचान पाया। पूछने पर महिला ने बताया कि यह चाकोड़ साग है। इसे सुखा कर पाउडर बनाकर रखते हैं और वर्ष भर खा सकते हैं। इसे टमाटर, प्याज़, लहसुन एवं हरी मिर्च के साथ माँड़ में मिला कर पकाया जाता है जो स्वादिष्ट तो होता ही है साथ ही गैस और कब्ज़ में बहुत फायदा करता है। इसका कोई रेट नहीं था बल्कि एक छोटे डब्बे (जिसे यहाँ पैला बोलते हैं) से भरकर दस रूपये में एक डब्बा दिया जाता है। नयी चीज देख कर मैंने इसे स्वाद जानने के लिए लिया। लोबिया, रोस्टेड कुल्थी और अरहर दालों के अलावा चाकोड़ साग खरीद कर लौटा। अगले दिन माँड़ में मिला कर चाकोड़ भी घर में बना। चिकित्स्कीय गुण जो भी हों पर यह चाकोड़ साग स्वादिष्ट था। इसे लाकर हमें पछताना नहीं पड़ा। विभिन्न प्रकार के सागों के लिए झारखण्ड के छोटानागपुर और कोल्हान का क्षेत्र प्रसिद्ध है। अगर इसे "सागों की राजधानी" (The Sag Capital of World) कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी।   



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