बाबा तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सिर्फ श्रीराम की ही कथा नहीं लिखी है बल्कि एक ऐसे सामाजिक जीवन जीने की भी सीख दी है जिसमें व्यक्ति एक उच्च नैतिक स्तर को प्राप्त कर समग्र समाज के लिए शांतिपूर्ण एवं प्रगतिशील वातावरण तैयार करता है। इसमें त्याग और परोपकार का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी कई चौपाइयाँ मनुष्य को जीवन में मार्गदर्शन करती हैं एवं चरित्र का निर्माण करती हैं। आज जहाँ विश्व में हिन्दू धर्म के खिलाफ एक व्यापक षड़यंत्र चल रहा है वहीं कुछ हिन्दू राजनीति के चलते अथवा स्वार्थवश बाबा तुलसीदास के विरुद्ध घृणा फैला कर उसी डाल को काट रहे हैं जिसपर वे बैठे हैं। किन्तु श्रीरामचरितमानस सूर्य की तरह सदा समाज को धार्मिक एवं मानवीय प्रकाश से प्रकाशित करता रहेगा।
ये बातें मैं यूँ ही नहीं कह रहा हूँ बल्कि अपनी देखी और अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ। मुझे स्मरण है जबतक पिताजी नौकरी में रहे, उन्हें बहुत पूजा-पाठ नहीं करते नहीं देखा पर ईश्वर में गहरी आस्था थी। चलते रस्ते में किसी भी धर्म का धार्मिक स्थल हो दिखते ही उनका सर एकबार जरूर झुक जाता था। जब कुछ गुनगुनाते थे तो मानस की चौपाइयाँ ही। सुनते सुनते हमें भी याद हो गयीं थीं। उन्हीं में से एक चौपाई जो गाते थे वह है,
सुत बित नारी भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।
अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।
ये ऐसी पंक्तियाँ हैं जो भाईयों के बीच प्रेम बढ़ाने एवं त्याग की भावना रखने की प्रेरणा देती हैं। जिसका परिणाम परिवार एवं समाज में शांति एवं प्रगति होता है। दादाजी एक ग्रामीण थे, आय भी कम ही थी। पाँचवीं के बाद पढ़ाई के लिए विद्यालय गाँव के आसपास न था उस वक्त। तो पिताजी ने बड़ी बहन के ससुराल में रह कर पढ़ा। वहाँ भी विद्यालय घर से लगभग पाँच किलोमीटर दूर था। प्रतिदिन इतनी दूर जाना और आना। लौटते प्रायः शाम हो जाती वह भी गाँव का खेत खलिहानों वाला कच्चा रास्ता जिसमें एक श्मशान भी पड़ता था। पिताजी उसे मुर्दघट्टी बोलते अपने संस्मरणों में क्योंकि यही ग्रामीण भी बोलते थे। सुनसान रहता शाम को। उन्हें लौटते समय सबसे ज्यादा डर वहीं लगता था, आखिर एक बच्चा ही थे उस समय। दीदी घर के बाहर रास्ते पर थोड़ा आगे बढ़कर चिंतित सी आने की बाट जोहती।
इसी तरह उनके बड़े भाई अर्थात मेरे चाचा जी ने भी अपने ननिहाल में रहकर पढाई की। चाचा जी सबसे बड़े भाई थे और पिताजी उनके बाद। पिताजी से छोटे और तीन भाई थे। बी.ए. करके चाचाजी बगल के जिले के अंदरूनी प्रखंड में शिक्षक बन गए और पिता जी बगल के प्रखंड में क्लर्क। बाद में परीक्षा पास कर पिताजी सचिवालय में सहायक बनकर राजधानी आ गए। पैरों पर खड़े होने के बाद दोनों भाइयों ने छोटे तीनो भाइयों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। छोटे भाई गाँव के स्कूल की पढाई करके चाचा जी के पास चले जाते। उन्हीं के स्कूल में मैट्रिक तक पढ़ते फिर इंटर और ग्रेजुएशन पिता जी के साथ अर्थात हमलोगों के साथ रह कर राजधानी के बेहतर कॉलेज से करते। यहाँ बड़ी चाची और मेरी माँ का भी योगदान हैं क्योंकि जब परिवार में कोई सदस्य बढ़ता है तो गृहणी का भी कार्यभार बढ़ जाता है। आप समझ सकते हैं कि उस समय इतनी सुविधा भी न थी। एलपीजी गैस का उपयोग न होता था। ग्रामीण इलाकों में लकड़ी, पुआल और गोयठा का जलावन में उपयोग होता था शहरों में कोयले का। पर कभी चाची या माँ ने उन छोटे चाचाओं को रखने में आनाकानी न की। मुझे लगता है कि ऐसा माहौल बनाने में मानस की उपरोक्त चौपाइयों का बड़ा स्थान था। जहाँ आजकल कई समाचार सुनने को मिलते हैं कि भाइयों के बीच बँटवारे का विवाद तो पैसे का विवाद, ऊपर से कोई गृहणी अपने बच्चों के अतिरिक्त किसी को परिवार में रखने के विरोध में होती है वहाँ मेरे पिता और चाचा जी ने मिलकर बाकी के तीनों भाइयों को साथ रख कर शिक्षित किया और नौकरी पाने में भी सहायता की।
यद्यपि इस देश के संविधान में हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तक स्कूलों में पढ़ाना मना है किन्तु समाज की भलाई की सोची जाये तो स्कूलों में मानस की शिक्षा एक अच्छे समाज का निर्माण करने में सहायक होती। अंत में इन चौपाईयोँ का प्रसंग सहित अर्थ कहता हूँ।
सुत बित नारी भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।
अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।
अर्थ - हे भाई ! इस संसार में पुत्र, धन और स्त्री बार बार मिल सकते हैं किन्तु सहोदर भाई दुबारा नहीं मिल सकता। इस बात पर विचार कर भाई तुम अपनी आँखें खोलो।
प्रसंग - जब मेघनाद से युद्ध में लक्ष्मण जी को शक्तिबाण लगा और वे मूर्छित हो कर गिर पड़े तब श्रीराम विलाप करते हुए उक्त पंक्तियाँ बोलते हैं।
---- मिश्राजी के संस्मरणों से साभार
39.
34. रवि की दिलेरी
30. How to type superscript and subscript in Blogger?
29. Was the lockdown announced by PM necessary for checking COVID-19? क्या लॉकडाउन जरुरी था?
28. Giloy, Guduchi, Gurich, Amrita - Traditional Ayurvedic Medicine
27. Monkey fruit -- Barhar, badahal
26. Mahua
25. Never bargain with a farmer
24. Ganda (गंडा) - a forgotten unit
23. Totka - Kale Ghode ki Naal - Earning from superstitions
22. Tikhur - The East Indian Arrowroot
21. Birdwatch - Swift, Swiftlets
29. Was the lockdown announced by PM necessary for checking COVID-19? क्या लॉकडाउन जरुरी था?
28. Giloy, Guduchi, Gurich, Amrita - Traditional Ayurvedic Medicine
27. Monkey fruit -- Barhar, badahal
26. Mahua
25. Never bargain with a farmer
24. Ganda (गंडा) - a forgotten unit
23. Totka - Kale Ghode ki Naal - Earning from superstitions
22. Tikhur - The East Indian Arrowroot
21. Birdwatch - Swift, Swiftlets
18. Never buy a cheap Geyser
17. Washing Machine - Semi-automatic or Fully-automatic
16. Chicory and Coffee
15. Khaksa, Khaksi, Konkari- The smaller Spine gourd - Food Blog
14. Rugra, (रुगड़ा), Phutka, Puttu - A type of mushroom - vegetable - Food Blog.
13. Jatadhari Bull - जटावाले ऋषभ (सांड़)
17. Washing Machine - Semi-automatic or Fully-automatic
16. Chicory and Coffee
15. Khaksa, Khaksi, Konkari- The smaller Spine gourd - Food Blog
14. Rugra, (रुगड़ा), Phutka, Puttu - A type of mushroom - vegetable - Food Blog.
13. Jatadhari Bull - जटावाले ऋषभ (सांड़)
===<<<O>>>===
No comments:
Post a Comment