Monday, December 2, 2024

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Saturday, November 30, 2024

यूपी वाले ड्राइवर भैया

    तीर्थ यात्रा से लौटते समय एक दिन का समय बचा था। फ्लाइट मुंबई से थी तो हमलोगों ने सोचा कि एक दिन मुंबई ही घूमा जाए। योजना बनी कि सबेरे तैयार हो कर पहले महालक्ष्मी मंदिर में दर्शन किया जाये। सबेरे तैयार होकर होटल से निकल हम लोग सड़क पर आये। सामने ही एक काली-पीली टैक्सी खड़ी थी, बुजुर्ग ड्राइवर से बात कर सभी उसमें बैठे। आपस में हमारी बातें सुनकर ड्राइवर समझ गया कि ये लोग बिहार तरफ के हैं, पूछ ही लिया हमसे। मैंने बताया पटना से हूँ। फिर तो उनकी बातें चालू हो गयीं।

    "आप लोग लार्ड्स होटल में रुके हैं क्या ?"

    "हाँ"

    "Mल्ले का होटल है वो। पहले एक क्रिस्चियन का हुआ करता था। फिर इसने खरीद ली। एक-एक दुकान को जानता हूँ मैं इस इलाके में। तीस सालों से गाड़ी चला रहा हूँ यहाँ। फलाने सेठ जी के यहाँ रहता हूँ। बहुत मानते थे मुझे वो। अब नहीं रहे वो पर बोल के गए थे कि जब तक ये है, निकालोगे नहीं ललित पंडित को।"

जब उसने होटल के नाम का उच्चारण लॉर्ड्स की जगह लार्ड्स किया था, तो मैंने अनुमान लगा लिया था कि ये यूपी से है। मैंने भी पूछ ही लिया,"आप यूपी से हैं ?"

"हाँ, प्रयाग का रहने वाला हूँ।"

वास्तव में यूपी की भाषा का जो बोलने का तरीका है (एक्सेंट), उसमें लोग 'ऑ' के जगह 'आ' का उच्चारण करते हैं। जैसे 'हॉस्टल' को 'हास्टल', 'हॉल' को 'हाल' बोलना।      

    उसके बातों का सिलसिला चलता रहा - "देखो, प्राइवेट टैक्सी जो भी मिलेगी OLA से ज्यादा ही पड़ेगा। वैसे आपलोग उधर के ही हो, माने पटना के हो तो दस-बीस कम दे देना। मैं ज्यादा नहीं लेता पर क्या करूँ, हर चीज महँगी है। पेट्रोल महँगी है, मशीन का तेल महंगा है। .... "

   इसी बीच उनका फोन आ गया। फोन पर बोलते सुना,"हाँ मनीजर साहेब, बोलिये"

        उधर से,"कहाँ हो अभी आप ? अभी आ सकते हो?"

    ड्राइवर,"हाँ, अभी महालक्ष्मी मंदिर जा रहा हूँ। कितनी देर में आना है?"

        "पंद्रह मिनट में आ सकते हो तो बोलो, नहीं तो दूसरा देखना होगा।"

    "आ जाऊंगा मैं। बस पंद्रह से बीस मिनट में पहुँचुँगा।"

और उसके बाद वे रेस हो गए और मुख्य सड़क पर लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास उतार कर बोले, "यहाँ से पैदल दो-तीन मिनट का रास्ता है महालक्ष्मी मंदिर का, चले जाओ, अंदर भीड़-भाड़ रहेती है, गाड़ी जाने में दिक्कत होगी।" उनको पैसे देकर हम लोग रास्ता पूछते बढ़े। देखा कि कार तो आ-जा रही थी उस रास्ते में। समझ गए हम कि मैनेजर साहेब के पास जाने की हड़बड़ी थी उन्हें इसीलिए कैब इधर न लाये।                

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Sunday, November 10, 2024

देउड़ी मंदिर और चाकोड़ साग - (हिंदी ब्लॉग)

देउरी मंदिर, तमाड़, राँची 

देउड़ी मंदिर झारखण्ड के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से एक है। राँची से जमशेदपुर की ओर जाने वाले नेशनल हाइवे के किनारे बुंडू के तमाड़ गॉंव में बसा इस प्राचीन मंदिर का गर्भ-गृह अभी भी अपने मूल पत्थर वाले स्ट्रक्चर में है जिसके चारों ओर नया स्ट्रक्चर भक्तों की पंक्तियों के लिए और सुंदरता के लिए बनाया गया है। गर्भ -गृह में लगभग तीन फीट ऊँची सोलह-भुजी दुर्गा माँ की पाषाण प्रतिमा है। प्रतिमा के दोनों तरफ एक-एक पुजारी बैठते हैं जो एक-एक परिवार को एक साथ पूजा कराते हैं, क्योंकि एक साथ अंदर में इतनी ही जगह है। यह मंदिर तब से और अधिक प्रसिद्ध हो गया जब से पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी यहाँ आने लगे।

   इस मंदिर में आप चाहे राँची से जाएँ या जमशेदपुर से - जंगल, पहाड़ और नदियों से गुजरने वाले रास्ते में आपको झारखण्ड की सुंदरता के दर्शन होंगे। यदि मानसून का समय हो तो कहने ही क्या ! बारह बजे से साढ़े बारह बजे तक मंदिर में भोग -आरती के कारण दर्शन पूजन नहीं होता और इसके एक घंटे बाद तक भीड़ ज्यादा होती है। मंदिर परिसर में पूजा के सामान और खिलौनों की दुकानें हैं। पर मैं जब भी यहाँ जाता हूँ तो पूजा के बाद जो मुझे ज्यादा आकर्षित करता है वह है यहाँ पेड़ के नीचे जमीन पर स्थानीय महिलाओं द्वारा लगाया जाने वाला दलहन की दुकान। देसी सामान जानकर इनकी खुदरा खरीदारी करता हूँ। इनमें मूँग, मसूर, उड़द, अरहर, कुल्थी इत्यादि के दाल होते हैं। कुल्थी और अरहर के उलाये (रोस्टेड) दाल भी होते हैं। कुल्थी का दाल किडनी की पथरी को दूर करता है। रोस्टेड अरहर का दाल हल्की खटाई के साथ एक अलग ही स्वाद देता है। खड़ा मूंग और उरद का दाल भी मिल जायेगा यहाँ।जब से लोगों में मुनगा के पत्तों के फायदे की जागरूकता बढ़ी है तो मार्किट में इसके सूखे पत्ते भी बिकने लगे हैं। एक दलहन जिसे लोबिया या घँघरा भी कहते हैं वह भी यहाँ मिलता है। इसे आप मूंग की तरह रात भर भिगोने के बाद सुबह कच्चा खा सकते हैं या इन भीगे बीजों का छोला बनाकर सब्ज़ी की तरह। स्वादिष्ट होते हैं ये। 
   (इस ब्लॉग को आप नीचे एम्बेडेड यूट्यूब में भी सुन सकते हैं) 

सबसे पीछे, लाल तीर के पास
बोरी में चाकोड़ साग पाउडर

इन सब को तो मैं पहचानता हूँ पर किनारे रखे हुए एक हरे पाउडर को नहीं पहचान पाया। पूछने पर महिला ने बताया कि यह चाकोड़ साग है। इसे सुखा कर पाउडर बनाकर रखते हैं और वर्ष भर खा सकते हैं। इसे टमाटर, प्याज़, लहसुन एवं हरी मिर्च के साथ माँड़ में मिला कर पकाया जाता है जो स्वादिष्ट तो होता ही है साथ ही गैस और कब्ज़ में बहुत फायदा करता है। इसका कोई रेट नहीं था बल्कि एक छोटे डब्बे (जिसे यहाँ पैला बोलते हैं) से भरकर दस रूपये में एक डब्बा दिया जाता है। नयी चीज देख कर मैंने इसे स्वाद जानने के लिए लिया। लोबिया, रोस्टेड कुल्थी और अरहर दालों के अलावा चाकोड़ साग खरीद कर लौटा। अगले दिन माँड़ में मिला कर चाकोड़ भी घर में बना। चिकित्स्कीय गुण जो भी हों पर यह चाकोड़ साग स्वादिष्ट था। इसे लाकर हमें पछताना नहीं पड़ा। विभिन्न प्रकार के सागों के लिए झारखण्ड के छोटानागपुर और कोल्हान का क्षेत्र प्रसिद्ध है। अगर इसे "सागों की राजधानी" (The Sag Capital of World) कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी।   



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Friday, December 15, 2023

मिलइ न जगत सहोदर भ्राता -- (हिंदी ब्लॉग)


लक्ष्मण को लगा शक्तिबाण (चित्र-साभार गूगल)

       बाबा तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सिर्फ श्रीराम की ही कथा नहीं लिखी है बल्कि एक ऐसे सामाजिक जीवन जीने की भी सीख दी है जिसमें व्यक्ति एक उच्च नैतिक स्तर को प्राप्त कर समग्र समाज के लिए शांतिपूर्ण एवं प्रगतिशील वातावरण तैयार करता है। इसमें त्याग और परोपकार का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी कई चौपाइयाँ मनुष्य को जीवन में मार्गदर्शन करती हैं एवं चरित्र का निर्माण करती हैं। आज जहाँ विश्व में हिन्दू धर्म के खिलाफ एक व्यापक षड़यंत्र चल रहा है वहीं कुछ हिन्दू राजनीति के चलते अथवा स्वार्थवश बाबा तुलसीदास के विरुद्ध घृणा फैला कर उसी डाल को काट रहे हैं जिसपर वे बैठे हैं। किन्तु श्रीरामचरितमानस सूर्य की तरह सदा समाज को धार्मिक एवं मानवीय प्रकाश से प्रकाशित करता रहेगा। 
    ये बातें मैं यूँ ही नहीं कह रहा हूँ बल्कि अपनी देखी और अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ। मुझे स्मरण है जबतक पिताजी नौकरी में रहे, उन्हें बहुत पूजा-पाठ नहीं करते नहीं देखा पर ईश्वर में गहरी आस्था थी। चलते रस्ते में किसी भी धर्म का धार्मिक स्थल हो दिखते ही उनका सर एकबार जरूर झुक जाता था। जब कुछ गुनगुनाते थे तो मानस की चौपाइयाँ ही। सुनते सुनते हमें भी याद हो गयीं थीं। उन्हीं में से एक चौपाई जो गाते थे वह है, 
सुत बित नारी  भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग  बारहिं बारा।।
अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।

     ये ऐसी पंक्तियाँ हैं जो भाईयों के बीच प्रेम बढ़ाने एवं त्याग की भावना रखने की प्रेरणा देती हैं। जिसका परिणाम परिवार एवं समाज में शांति एवं प्रगति होता है। दादाजी एक ग्रामीण थे, आय भी कम ही थी। पाँचवीं के बाद पढ़ाई के लिए विद्यालय गाँव के आसपास न था उस वक्त। तो पिताजी ने बड़ी बहन के ससुराल में रह कर पढ़ा। वहाँ भी विद्यालय घर से लगभग पाँच किलोमीटर दूर था। प्रतिदिन इतनी दूर जाना और आना। लौटते प्रायः शाम हो जाती वह भी गाँव का खेत खलिहानों वाला कच्चा रास्ता जिसमें एक श्मशान भी पड़ता था। पिताजी उसे मुर्दघट्टी बोलते अपने संस्मरणों में क्योंकि यही ग्रामीण भी बोलते थे। सुनसान रहता शाम को। उन्हें लौटते समय सबसे ज्यादा डर वहीं लगता था, आखिर एक बच्चा ही थे उस समय। दीदी घर के बाहर रास्ते पर थोड़ा आगे बढ़कर चिंतित सी आने की बाट जोहती। 
         इसी तरह उनके बड़े भाई अर्थात मेरे चाचा जी ने भी अपने ननिहाल में रहकर पढाई की। चाचा जी सबसे बड़े भाई थे और पिताजी उनके बाद। पिताजी से छोटे और तीन भाई थे। बी.ए. करके चाचाजी बगल के जिले के अंदरूनी प्रखंड में शिक्षक बन गए और पिता जी बगल के प्रखंड में क्लर्क। बाद में परीक्षा पास कर पिताजी सचिवालय में सहायक बनकर राजधानी आ गए। पैरों पर खड़े होने के बाद दोनों भाइयों ने छोटे तीनो भाइयों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। छोटे भाई गाँव के स्कूल की पढाई करके चाचा जी के पास चले जाते। उन्हीं के स्कूल में मैट्रिक तक पढ़ते फिर इंटर और ग्रेजुएशन पिता जी के साथ अर्थात हमलोगों के साथ रह कर राजधानी के बेहतर कॉलेज से करते। यहाँ बड़ी चाची और मेरी माँ का भी योगदान हैं क्योंकि जब परिवार में कोई सदस्य बढ़ता है तो गृहणी का भी कार्यभार बढ़ जाता है। आप समझ सकते हैं कि उस समय इतनी सुविधा भी न थी। एलपीजी गैस का उपयोग न होता था। ग्रामीण इलाकों में लकड़ी, पुआल और गोयठा का जलावन में उपयोग होता था शहरों में कोयले का। पर कभी चाची या माँ ने उन छोटे चाचाओं को रखने में आनाकानी न की। मुझे लगता है कि ऐसा माहौल बनाने में मानस की उपरोक्त चौपाइयों का बड़ा स्थान था। जहाँ आजकल कई समाचार सुनने को मिलते हैं कि भाइयों के बीच बँटवारे का विवाद तो पैसे का विवाद, ऊपर से कोई गृहणी अपने बच्चों के अतिरिक्त किसी को परिवार में रखने के विरोध में होती है वहाँ मेरे पिता और चाचा जी ने मिलकर बाकी के तीनों भाइयों को साथ रख कर शिक्षित किया और नौकरी पाने में भी सहायता की। 
           यद्यपि इस देश के संविधान में हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तक स्कूलों में पढ़ाना मना है किन्तु समाज की भलाई की सोची जाये तो स्कूलों में मानस की शिक्षा एक अच्छे समाज का निर्माण करने में सहायक होती। अंत में इन चौपाईयोँ का प्रसंग सहित अर्थ कहता हूँ। 

सुत बित नारी  भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग  बारहिं बारा।।
अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।

अर्थ - हे भाई ! इस संसार में पुत्र, धन और स्त्री बार बार मिल सकते हैं किन्तु सहोदर भाई दुबारा नहीं मिल सकता। इस बात पर विचार कर भाई तुम अपनी आँखें खोलो। 

प्रसंग - जब मेघनाद से युद्ध में लक्ष्मण जी को शक्तिबाण लगा और वे मूर्छित हो कर गिर पड़े तब श्रीराम विलाप करते हुए उक्त पंक्तियाँ बोलते हैं। 

---- मिश्राजी के संस्मरणों से साभार 





39.



















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Wednesday, May 17, 2023

मेहनत की कमाई

         यह एक छोटी सी सच्ची घटना है। कामवाली ने किश्तों पर स्मार्ट-फोन फ़रवरी महीने में लिया क्योंकि आजकल यह एक आवश्यक आवश्यकता सी हो गयी है। कई घरों में मेहनत कर बच्ची को पास के महंगे स्कूल में पढ़ा रही है। स्कूल से शिक्षक भी सन्देश मोबाइल पर देने लगे हैं। साथ ही प्रतिदिन छुट्टी की सूचना भी फोन से आती है जिसके बाद काम के बीच में बच्ची को स्कूल से लाकर घर छोड़ती है। इसके अलावा फोन से और भी कई जरूरतें पूरी होती हैं।    
मेहनत की कमाई का फोन

      एक सप्ताह पहले की बात है। बच्ची उसी मोबाइल में कुछ विडीओ देखते हुए चापानल के पास गयी जहाँ हाथ से छूटकर फोन पानी के बाल्टी में जा गिरा। बहार जब निकाला तो फोन बंद हो चुका था। डरकर बच्ची ने फोन को कपड़े से पोछा और घर में चुपचाप रख दिया। शाम का समय था। फोन की जरुरत रात तक न हुई। सबेरे कामवाली जब फोन को चार्ज में लगाने गयी तो देखा फोन तो बिलकुल डेड है। पूछताछ करने पर बच्ची ने सही बात बताई। पानी सुखाने के लिए उसे 24 घंटे तक चावल के डब्बे में रखा। पर कोई फायदा न हुआ। न फोन ऑन हो और न चार्ज ही हो। हमने सुना तो बहुत अफ़सोस हुआ। सुझाव दिया की धूप में रखकर देखो शायद पानी पूरा निकले। अगले दिन तक भी कुछ न हुआ। मैंने कहा फोन अभी वारंटी में है, ग्राहक सेवा केंद्र में जा कर दिखाओ शायद कुछ करे। उसने फोन और बिल मेरे घर में पटका और बोला कि मुझे काम से कहाँ फुर्सत है, ऊपर से कहाँ जाऊँ कैसे करूँ नहीं समझ आता। आप ही दिखा दीजिये। उसका पति भी दिन में छड़ बैंडिंग के कामपर जाता है। अभी फोन की पूरी किश्त भी नहीं चुकी है। 
          गूगल सर्च किया तो चावल में रखने के अलावा सिलिका जेल के पैकेट के साथ डब्बे में बंद करने की टिप पढ़ी। जूतों के डब्बों से खोजकर सिलिका जेल के पैकेट के साथ फोन को डब्बे में बंद किया। सिम-ट्रे भी निकाल दिया ताकि नमी आसानी से निकले। अब फोन का पिछला कवर खुलने वाला आता नहीं जिससे नमी निकलना आसान नहीं होता। अगले दिन उम्मीद के साथ ऑन करने की कोशिश की, चार्ज करने की कोशिश की पर बेकार। उसदिन रविवार था, अतः अगले दिन कस्टमर केयर जाने का सोचा।  
          सोमवार को कस्टमर केयर जाते जाते चार बज गए। उन्होंने देखा तो बोला बैठिये, देखते हैं। फोन को गर्म कर खोलते हैं। आधे घंटे बाद पिछला कवर खोल कर दिखाया और बोला यह देखिये, इस जगह हरा जंग सा लगा हुआ है। जरूर फोन काफी देर तक पानी में रहा है। मैं बोला अभी तो वारंटी पीरियड के अंदर है, ठीक कर दीजिये। उसने कहा पानी घुस जाने पर वारंटी काम नहीं आएगी। यह शर्तों के साथ होती है। आगे अगर फोन इसी तरह ले जाना है तो ले जा सकते हैं या मरम्मत करानी है तो एस्टीमेट बता सकता हूँ वह भी एक शर्त के साथ। "क्या शर्त?" मैंने पूछा। वह बोला कि अगर एस्टीमेट जान कर मरम्मत नहीं कराते हैं तो 120 रूपये चार्ज लगेंगे। अगर मरम्मत कराते हैं तो यह चार्ज नहीं लगेगा सिर्फ मरम्मत का चार्ज लगेगा। मैं बोला ठीक है, बताओ चार्ज मरम्मत का। उसने फिर मुझे आधे घंटे से ज्यादा बैठाया और बोला मदर बोर्ड के साथ साथ तीन और सामान बदलने होंगे। कुल खर्च कंप्यूटर के चार्ज लिस्ट से देखकर लगभग 4,500/- रूपये बताये। सुनकर मैं मायूस हो गया। 7500/- के फोन के मरम्मत पर 4500/- खर्च करना वाज़िब न लगता था। उसे 120/- चुकाया और फोन लेकर वापस घर आ गया। मंगलवार की सुबह जब वह काम करने आयी तो पत्नी ने फोन का हाल बता दिया। वह भी मायूस हो कर काम करने के बाद अपना फोन लेकर चली गयी।  
       आज बुधवार की सुबह जब वह आयी तो चहकते हुए पत्नी से बोली, "आंटी, मेरा फोन ठीक हो गया। " पत्नी ने भी आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी से पूछा कि कहाँ तुमने ठीक कराया। वह बोली, "कहीं नहीं। आज सवेरे यूँ ही चार्ज में लगाया तो स्क्रीन ऑन हो गया। फिर फोन भी खुल गया और काम कर रहा है। अंकल जो कस्टमर केयर ले गए ना, लगता है वहाँ कवर खुलने और हीट करने से सारा नमी निकल गया। "  
          जिसने भी सुना आश्चर्य और ख़ुशी व्यक्त किया। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि दिन भर मेहनत करने वाली का खून-पसीने की कमाई बर्बाद होने से भगवान ने बचा लिया। 
                         --- आज दिनांक 17 मई, 2023 {बुधवार}               

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Friday, March 31, 2023

दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ टी -Darjeeling Long Leaf Tea (Hindi Blog) review

       चाय के शौकीन लोगों में "दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ टी -Darjeeling Long Leaf Tea" का स्वाद और फ्लेवर एक प्रशंसनीय स्थान रखता है | प्रायः चाय में रंग (colour) और उत्तम फ्लेवर दोनों को पाने के लिए प्रचलित चाय को बना कर गैस बंद कर दिया जाता है और "दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ टी" की पत्तियाँ उसमे डालकर दो मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है | इस प्रकार तैयार चाय की बात ही अलग होती है | वर्षों से "दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ टी" के बाजार में LIPTON ब्रांड का एकछत्र राज रहा है | किन्तु उत्तम ब्रांड (यथा टाटा टी) के साधारण चाय पत्ती के मुकाबले "लिप्टन" ब्रांड की दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ टी लगभग चार गुना ज्यादा महँगी है | जहाँ टाटा गोल्ड - TATA GOLD चाय पत्ती के 250 ग्राम की कीमत Amazon पर रु 155/= है और Flipkart पर रु 199/= है वहीँ  250 ग्राम दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ टी LIPTON ब्रांड की कीमत Flipkart पर रु 587/= है और Amazon पर रु 495/= है | 

दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ चाय 
अमेज़न पर इसकी (TATA ब्रांड) कीमत रु 282/=
Flipkart पर TATA ब्रांड की यह लीफ चाय रु 248/=

    किन्तु अब टाटा द्वारा भी "दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ टी- Darjeeling Long Leaf Tea" बाजार में उपलब्ध है जो LIPTON ब्रांड के मुकाबले सस्ती है | LIPTON एक बहुराष्ट्रीय ब्रांड है जबकि टाटा घरेलु | टाटा का स्वाद और फ्लेवर जरा भी कमतर नहीं है | यह 250 ग्राम नहीं बल्कि 200 ग्राम के पैक में आता है और अमेज़न पर इसकी (TATA ब्रांड) कीमत रु 282/= है | Flipkart पर TATA ब्रांड की यह लीफ चाय रु 248/= में उपलब्ध है |  

 दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ टी
LIPTON ब्रांड की कीमत Flipkart पर रु 587/=

      इस प्रकार टाटा की दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ चाय प्रति 100 ग्राम लगभग रु 125/= पड़ती है जबकि लिप्टन की रु 200/= पड़ती है | इसलिए अगली बार जब दार्जीलिंग लॉन्ग लीफ चाय खरीदनी हो तो मूल्य के इस बड़े अंतर को जरूर ध्यान में रखें |  


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