Monday, November 1, 2021

कटुम, सुन्डक्काई - Turkey Berry, Pea eggplant

Pea eggplant, Turkey Berry
कटुम

      कुछ ऐसी सब्जियाँ स्थानीय बाज़ार में देखने को मिलती हैं जिनका व्यावसायिक उत्पादन नहीं होता और न ही ज्यादा प्रचलित हैं | अधिकांश लोग इन सब्जियों को देखकर नहीं पहचान पाते और उत्सुकतावश इनका नाम पूछते हैं | झारखंड में ऐसी कई सब्जियाँ हैं | जो लोग जानते हैं वे ही इसे खरीदते हैं | ऐसी ही एक सब्जी है जिसे 'कटुम' के स्थानीय नाम से जानते हैं | इसे सड़क किनारे या झाड़ियों में भी उगते देखा जा सकता है | पौधा बिल्कुल बैंगन के पौधों से मिलता जुलता है | सफ़ेद फूलों के साथ यह गुच्छों में मटर के आकार में फलता है जिसके कारण इसे अंग्रेजी में 
Pea eggplant के साधारण नाम से पुकारते हैं | जिज्ञासा होने पर जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि दक्षिण भारत में यह "सुन्डक्काई" के नाम से प्रचलित है और वहाँ यह विभिन्न व्यंजनों में प्रमुखता से उपयोग में लायी जाती है | इसका उपयोग पूरी दुनियाँ में कई प्रकार के व्यंजनों में होता है | इसका एक अन्य नाम टर्की बेरी (Turkey Berry) भी है | 

         इसके कई प्रकार होते हैं और यह बहुत तेज़ी से खर पतवार की तरह फैलता है जिसके कारण यह लगभग पूरी दुनियाँ में पाया जाता है | यह सालों भर फलने वाला पौधा है जिसे धूप चाहिए | आसानी से हर प्रकार के मौसम को झेल सकता है परन्तु उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में यह आसानी से फलता फूलता है | इसका वैज्ञानिक नाम Solonum Torvum है |

कटुम, Pea eggplant का पौधा

          यह कटुम बहुत गुणकारी मानी जाती है | स्वाद में कड़वी होने के कारण लोग इसे चाव से नहीं खाते परन्तु शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में यह जानी जाती है जो सर्दी, खाँसी और बुखार को रोकने में प्रभावी है | कोरोना महामारी में कई लोगों को इसे सब्ज़ी की तरह खाते देखा है ताकि जल्द स्वस्थ हो सकें | इसका सेवन शरीर में लाल रक्त कण को बढ़ाता है जिससे हीमोग्लोबिन की कमी में लाभ होता है | दक्षिण भारत में इसे महिलाओं के लिए गुणकारी माना जाता है जो पीरियड्स और गर्भ धारण के समय लाभकारी होता है | मधुमेह अर्थात डायबिटीज़ में यह फायदेमंद होता है | इसका सेवन पाचन क्रिया में लाभकारी है जो दस्त, एसिडिटी और पेट दर्द की तकलीफ में आराम देता है | यह हृदय से सम्बंधित रोग यथा उच्च रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) को संतुलित करने में सहायक होता है | कुछ लोग इसे किडनी से सम्बंधित रोगों में भी गुणकारी मानते हैं | यह मेटाबोलिज्म को दुरुस्त रखता है और कई प्रकार के कैंसर को रोकने में मददगार होता है | इसमें प्राकृतिक रूप से एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं | (ये जानकारियां स्थानीय लोगों से जुटाई गईं हैं जिनके बारे में किसी डाक्टर से सलाह के बाद प्रयोग उचित होगा)| 

टर्की बेरी के एक व्यंजन में विभिन्न चरण 

       इसका प्रयोग अनेक प्रकार से व्यंजनों में किया जाता है किन्तु हल्दी और कड़ी पत्ते के साथ पकाया इसका सूप ज्यादा लोकप्रिय है | ताजे कटुम को थाई व्यंजनों में भी उपयोग किया जाता है और कभी -कभी कच्ची ही थाई चिल्ली पेस्ट में इस्तेमाल करते देखा जा सकता है | 

           हैटी नामक देश में इसका इस्तेमाल टोने-टोटके और वूडू नाम जादू में किया जाता है | 

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Monday, August 9, 2021

मैना का चूजा, A Myna Chick

       रवि के घर के आगे बरगद का एक पुराना बड़ा पेड़ है। इसकी शाखाएं ऊपर फैली हैं। एक बड़ा वृक्ष पक्षियों और कीट पतंगों के जीवन का बड़ा आधार होता है। कई पक्षी अपने घोंसले पेड़ों पर बनाते हैं और अंडे देकर कई दिनों तक उसपर बैठते हैं फलस्वरूप उन अण्डों से चूजे बाहर आते हैं। चूजे को अंडे से बाहर आते ही जो काम होता है वह है खाना। कुछ दिखे या न दिखे पर भोजन भरपूर चाहिए जिसके लिए ये चीं-चीं कर बड़ा शोर मचाते हैं।


     अधिकतर चूजों की आँखें अंडे से बाहर निकलने के बाद खुली नहीं होतीं, ये कुछ दिनों बाद खुलती हैं। लेकिन चोंच का फैलाव शरीर के अनुपात में बड़ा होता है। ये देखा जा सकता है, जब इनके माता या पिता के आने की आहट इनको होती है और भोजन की उम्मीद में ऊपर की ओर चोंच कर पूरा फैला देते हैं।


          ज्यादा भोजन इन्हें बढ़ने में मदद करता है और अंडे से बहार आने के एक सप्ताह के अंदर इनका शरीर कई गुना बढ़ जाता है। एक से ज्यादा चूजे घोंसले में हों तो भोजन के लिए आपस में प्रतियोगी भी बनते हैं। पक्षी जैसे ही भोजन लेकर घोंसले के पास आता है, ये चूजे चोंच फैला कर एक दूसरे को ठेलते हुए माता के चोंच में दबे भोजन के पास पहुँचने का प्रयास करते हैं ताकि माँ उनके मुँह में भोजन डाल दे। 

उदास चूजा

   जब चूजे बड़े होने लगते हैं तो इनके पर भी बढ़ने लगते हैं और ये इन्हें हिला कर पहले से ही अभ्यास करने लगते हैं। कल ऐसा ही एक मैना का चूजा बरगद के पेड़ पर अपने घोंसले से नीचे गिरा और रवि के दरवाजे के पास उदास सा दुबका रहा। उत्सुकतावश जब रवि इसके पास गया तो डरने के बदले चोंच फैला कर खाना मांगने लगा जैसे कोई पुराना पालतू हो। रवि को तो जैसे अपने फोटोग्राफी का देवप्रदत्त अवसर मिल गया। मुझे विडिओ कॉल कर दिखाया और कहने लगा मुर्गी का चूजा देखिये, मैंने कहा "ये तो मैना का चूजा है।" पर उसके दिमाग में था तोता-मैना की कहानी। उसे लगा कि मैना तो तोते जैसा होना चाहिए अर्थात मैना तोता का ही दूसरा जेंडर होता है।
आशा भरी नजरों से देखता

          मैंने उसे समझाया कि मैना और तोता दो बिलकुल अलग अलग पक्षी हैं। फिर गूगल से मैना की फोटो का स्क्रीनशॉट भेजा, तब जाकर उसे विश्वास हुआ। रवि की पत्नी आशु ने इसके सामने पेपर पर चावल रखा, पर चोंच ऊपर खोल कर मुँह में डालने का इशारा करने लगा। खुले चोंच में चावल डालते ही, और खाने के लिए चोंच फिर खोल दिया। खाने के बाद आशु ने इसे पानी भी पिलाया। खा-पीकर यह दीवार के बगल में बैठ गया। 

भूखा चूजा


  इसकी सुरक्षा के लिए खासकर कुत्तों से बचाने के लिए रवि ने इसे उठाकर ऊपर छत के पास एक रैक पर रख दिया। चूजे को छूने में भी रवि को डर लग रहा था। पूरी हिम्मत बटोर कर जल्दी से इसे उठा कर ऊपर रखा था और मुझे बताया, "अंकल इसे छूने में तो मेरी (हिम्मत) फट गयी।" 😅😅

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Saturday, April 10, 2021

पहले फ्रिज खरीदें या वाशिंग मशीन ?

      पहले फ्रिज खरीदें या वाशिंग मशीन ? यह सवाल एक सज्जन ने क्वोरा पर किया। कई लोगों ने पहले वाशिंग मशीन खरीदने की सलाह दी पर मेरा विचार इससे विपरीत था। क्यों? जो जवाब दिया वह नीचे है। 

          यदि घर के वयस्क सदस्य स्वस्थ हैं तो मैं फ्रिज पहले खरीदने की सलाह दूंगा क्योंकि बिना वाशिंग मशीन के कपड़े साफ किये जा सकते हैं लेकिन फ्रिज के बिना समान ठंडा नहीं किया जा सकता । फ्रिज एक बहुउपयोगी मशीन है यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ। आज से लगभग 35 वर्ष पहले की बात है, बिना फ्रिज वाशिंग मशीन के ही जीवन सामान्य था, कभी कमी महसूस नही हुई। फ्रिज को एक विलासिता की वस्तु समझता था। पर एक बार कार्यक्रम बना तो खरीद कर आ गया घर में। पहले तो वर्फ़ और आइसक्रीम जमाने के शौक से लिया गया, पर जल्द ही इसकी उपयोगिता समझ में आ गयी। सिर्फ बचा खाना रखने के काम में नहीं आता, सबसे अधिक उपयोगी है गर्मियों में दूध को बचाकर रखने में जिससे यह खराब न हो। जब फ्रिज न हो तो दूध को एक निश्चित अंतराल पर उबालते रखना पड़ता है। कभी बाज़ार गए सपरिवार, देर हुई, वापस लौटने पर गर्म किया दूध तो फट गया। फ्रिज है तो उबालने के बाद सामान्य तापक्रम आने पर रख दें अंदर, जब जरूरत हो तो निकाल कर गर्म कर लें।

      अगर सुबह सुबह बच्चों का टिफ़िन बनाना हो तो सबेरे समय बचाने के लिए रात में गूँधा आटा, या अन्य सामान कच्चा रख दें सबेरे पका लें।खाना बनाने में जितना समय लगता है इसकी तैयारी में भी उतना ही लगता है तो सबेरे कुछ समय बचेगा।

       कुछ मांसाहारी व्यंजन की तैयारी में, मांस को मसाले वगैरह लगा के एयर टाइट पैकेट में डालकर मैरीनेट होने फ्रिज में कम से कम आधे घंटे रखते हैं।

फ्रीजर के अंदर जगह

        कुछ वर्ष पहले इसकी एक और उपयोगिता समझ में आयी, अनाज को लंबे समय तक कीड़े, सुंडी से बचाने में। उस समय एक रिश्तेदार ने करीब 50 किलो घर मे उपजाए बिना केमिकल खाद के अपने खाने के लिए चावल गिफ्ट में दिए। बड़ा स्वादिष्ट चावल था, असली ऑर्गेनिक। छोटे परिवार में कितना चावल उपयोग हो पाता? कुछ दिनों बाद उसमें सूंडी वगैरह दिखने लगे। कभी नीम की पत्तियाँ डालीं तो कुछ और घरेलू उपाय, दवा डालकर बचाना ठीक न लगा क्योंकि फिर ऑर्गेनिक क्या रहा। तब मन में विचार आया कि शून्य तापमान पर शायद ये कीड़े जीने के आदी न होंगे। जिस प्लास्टिक पैकिंग में आटा आता है उसे साफकर सुखाया , चावल भरकर हेयर स्ट्रेटनेर से सील किया और वर्फ़ वाले रैक फ्रीजर में रख दिया। कुछ दूसरे ठंडे रैक में पैक कर रखा। यह तरीका शत प्रतिशत सफल रहा ।

       तो फ्रिज़ पहले, घर की महिलाओं को राहत। बाकी जब तक वाशिंग मशीन लाते हैं तब तक मिलजुलकर कपड़े साफ कर लें।

ऑनलाइन भी फ्रिज़, वाशिंग मशीन मंगा सकते हैं। लिंक क्लिक करें।













Monday, February 1, 2021

रवि की दिलेरी

        "अंकल, जरा कमरे से मरी छिपकिली निकाल दीजिये ना, मुझे डर लगता है", रवि के मुँह से यह सुनकर थोड़ी देर मैं उसे देखता रह गया फिर हँसी छूट गयी। पाँच फ़ीट दस इंच ऊँचा, पढ़ा लिखा बीo टेकo, तीस साल के गबरू जवान के मुँह से यह सुनना हँसी की ही बात थी। मैंने कहा कि भला मरी छिपकिली किसी का क्या बिगाड़ सकती है, ज़िंदा होती तो और बात थी। पर वह दस फ़ीट दूर ही खड़ा रहा और नज़दीक जाने को तैयार न हुआ। 

शुरू में छत्ता

      इस घटना से ऐसा लगता है कि रवि डरपोक होगा पर ऐसा नहीं है। वह बिलकुल नॉर्मल है और मेरे साथ कई वाटर फॉल्स, डैम, पहाड़ी और दूर के मंदिरों की यात्रा की है। जैसे नेपोलियन बिल्ली से डरता था लगता है रवि भी छिपकिली से डरता है। 

 

नज़दीक से

     पर कल उसने कुछ ऐसा किया कि जो मैं कभी नहीं करूँगा। उसने मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ा और आधा तोड़ दिया। ऊपर से इसकी पूरी फोटोग्राफी भी की। जब उसने मुझे फोटो भेजे तो आवाक रह गया। उसे हल्का डाँटा भी (ज्यादा डाँटने पर नाराज़ हो जाता है) कि ऐसी गलती फिर न करे। जब उससे पूछा कि ऐसा रिस्क लेने की क्या जरुरत थी, तो बताया कि फोटोग्राफी का शौक हो गया है और नयी नयी चीजों की तस्वीर लेने का मन होता है। ये तस्वीर मुझे इंस्टाग्राम पर अपलोड करने के लिए भेजने का मन हुआ। बेशक रवि अच्छी तस्वीर लेता है। उसके कई फोटो नाम के साथ मैंने भी अपने ब्लॉग और इंस्टाग्राम में पब्लिश किये हैं। मेरे लिए उसका इतना रिस्क लेना मेरे प्रति प्यार को दिखता है। 
तोड़ने के बाद बचा हुआ छत्ता

        जब मैंने पूछा कि कैसे मधुमक्खी के छत्ते को तोडा तो घटना सुनायी। छत्ता फर्स्ट फ्लोर की बालकॉनी में छत से लटक रहा था। मधुमक्खियाँ आस - पास उड़ रहीं थीं। यद्यपि वे कोई नुकसान नहीं कर रहीं थीं फिर भी उसे डर लग रहा था कि कहीं ये डंक न मारे। सबसे पहले उसने धुआँ उगलते कोयले का चूल्हा ठीक छत्ते के सीध में फर्श पर रखा। पर हवा के कारण धुआँ सीधे उपर छत्ते पर नहीं जा रहा था। मधुमक्खियाँ अपनी जगह बैठी रहीं । खतरा मोल लेते हुए रवि ने डंडे से छत्ते को हल्का हिला दिया और जल्दी से कमरे में भाग आया । इससे बौखला कर मधुमक्खियाँ तिलमिलाते हुए बाहर उड़ने लगीं, उन्हें धुआं भी अब लगने लगा । लगा होगा कि आसपास आग लग गयी है। अब छत्ते पर बहुत कम मक्खियाँ थीं। मौका देखकर लम्बे डंडे से उसने छत्ते पर दे मारा। आधा छत्ता टूट कर नीचे गिरा और रवि झट से दौड़ कर बालकोनी से कमरे में आ गया और दरवाजे को बंद कर लिया। 

टूट कर गिरा छत्ता जो नाली में चला गया था

         अब आता है इसका परिणाम। झट से कमरे में घुसने के चक्कर में पैंट चौखट के एक खोंच में फँस गया और महंगा पैंट थोड़ा फट गया। पैंट फँसने के कारण जो थोड़ी देरी हुई इतने में एक मधुमक्खी ने डंक मार दिया। उसका जो लहर होता है वह भुगतने वाला ही जानता है। जब मुझे पता चला तो मैंने कहा कि शुक्र मनाओ एक ही ने डंक मारा, वरना ये तो झुण्ड में आक्रमण करती हैं और अगर ऐसा होता तो लेने के देने पड़ जाते। इतना होने पर भी अगर शहद चखने को मिलता तो कुछ मन को संतोष होता। पर शहद का तो अलग ही अंत हुआ, वह बताता हूँ। यह बालकनी प्रथम तल पर है। निचे तले के पीछे किचेन गार्डन है जिसे देसी भाषा में बारी बोलते हैं। घर से सटे बारी में एक पुराना कुआँ है और कुँए से घर के किनारे कच्ची नाली जाती है जिसमे घर का उपयोगोपरान्त पानी बहता है। अब यह टूटा छत्ते का टुकड़ा बालकनी में न गिरकर, रेलिंग के बहार गया और नाली में गिर गया। अब नाली में गिरे छत्ते के टुकड़े का शहद तो नहीं खा सकते। वह बर्बाद हो गया।  

           अंततः मिला क्या ? इंस्टाग्राम के लिए तस्वीर और रवि के व्यक्तित्व का एक नया पहलु देखने को - रवि की दिलेरी।

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(सभी फ़ोटो रवि कुमार के सौजन्य से)